Crime News: सात सालों तक चालाकी से किडनी निकाली पर एक भी भारतीय को नहीं दी ट्रांसप्लांट कैसे हुई ये करतूत

Crime News: सात सालों तक चालाकी से किडनी निकाली पर एक भी भारतीय को नहीं दी ट्रांसप्लांट कैसे हुई ये करतूत

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Crime News: देवेंद्र शर्मा उर्फ डॉ. डेथ के गिरफतार होने के बाद अब उनके बॉस डॉक्टर अमित कुमार की पूरी कहानी सामने आई है। डॉक्टर अमित ने सात साल तक बेहद चालाकी से किडनी निकालने का घिनौना खेल खेला। इस दौरान करीब 750 किडनियां निकाली गईं, लेकिन इनमें से किसी भी किडनी को भारत में किसी मरीज को ट्रांसप्लांट नहीं किया गया। उनका असली मकसद विदेशी ग्राहकों को किडनी मुहैया कराना था। वे पहले विदेशी ग्राहक को खोजते और फिर देश के अलग-अलग हिस्सों से गरीब या आदिवासी लोगों को लुभाकर उनकी किडनी निकाल लेते। यह पूरी घिनौनी योजना उन्होंने बड़ी सफाई से अंजाम दी।

आयुर्वेदिक डॉक्टर से अवैध अंग तस्कर तक का सफर

डॉक्टर अमित उत्तराखंड के रहने वाले हैं। उन्होंने आयुर्वेद में बीएएमएस की पढ़ाई की थी। बड़े सपने थे, लेकिन उनकी आयुर्वेदिक क्लिनिक से आय नहीं हो रही थी। इसी वजह से उन्होंने मानव अंगों की तस्करी शुरू कर दी। वे जानते थे कि अगर वे मध्यम वर्ग के लोगों से किडनी निकालेंगे तो पकड़ में आ सकते हैं। इसलिए उन्होंने खास तौर पर पिछड़े और आदिवासी वर्ग के लोगों को निशाना बनाया। इन लोगों को लुभाकर वे किडनी निकालते और फिर उसे विदेशियों को ट्रांसप्लांट कर देते।

Crime News: सात सालों तक चालाकी से किडनी निकाली पर एक भी भारतीय को नहीं दी ट्रांसप्लांट कैसे हुई ये करतूत

अस्पतालों में घुसपैठ और विदेशियों को किडनी की सप्लाई

डॉक्टर अमित के पास देश के बड़े अस्पतालों में सूचना तंत्र था। इन अस्पतालों से उन्हें पता चलता था कि कौन-से विदेशी मरीज को किडनी चाहिए। किडनी ट्रांसप्लांट की कीमत उस वक्त 50 से 60 लाख रुपए थी। डॉक्टर अमित ने विदेशी ग्राहकों को कम कीमत यानी 40 से 50 लाख रुपए में किडनी उपलब्ध कराने का झांसा दिया। उन्होंने सीबीआई को बताया कि ट्रांसप्लांट की लागत काटने के बाद हर केस में उन्हें 30 से 35 लाख रुपए का मुनाफा होता था। जो गरीब या आदिवासी लोग उनकी मदद से किडनी देते थे, उन्हें वे 30 से 35 हजार रुपए नकद देते थे ताकि वे चुप रहें।

दिल्ली-एनसीआर में फर्जी अस्पतालों का जाल

डॉक्टर अमित ने दिल्ली एनसीआर में कई जगह अस्पताल और लैब खोले ताकि विदेशी ग्राहकों के सामने अपनी पहचान बड़ी कर सकें। लेकिन असली किडनी निकालने और ट्रांसप्लांट का काम उन्होंने गुरुग्राम और फरीदाबाद के गेस्टहाउस में चलाए गए अस्पतालों में किया। उनके साथ डॉक्टर उपेंद्र भी थे जो इस काम में उनके साथ थे। दिल्ली और ग्रेटर नोएडा में भी उन्होंने गेस्टहाउस को अस्पताल और लैब में बदला था। इन तमाम जगहों पर उन्होंने अपने बड़े नेटवर्क से विदेशियों के लिए किडनी ट्रांसप्लांट का धंधा चलाया।

डॉक्टर अमित कुमार का यह काला कारोबार देश के गरीब और जरूरतमंद लोगों की जिंदगी से खिलवाड़ था। पुलिस और सीबीआई ने अब इस मामले की गंभीरता से जांच शुरू कर दी है। ऐसे लोगों को जल्द ही सलाखों के पीछे लाने की कवायद जारी है ताकि मानव अंग तस्करी जैसे अपराध पर पूरी तरह से रोक लगाई जा सके।

Neha Mishra
Author: Neha Mishra

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