Kailash Mansarovar: कैलाश मानसरोवर यात्रा को सनातन धर्म में सदियों से महत्वपूर्ण माना जाता है। इसे भगवान शिव का निवास स्थल और आध्यात्मिक ऊर्जा का केंद्र भी माना जाता है। आज भी हर साल लोग इस पवित्र यात्रा पर जाते हैं। यह मान्यता है कि कोई भी व्यक्ति अब तक कैलाश पर्वत की चढ़ाई नहीं कर पाया है। ऐसे में सवाल उठता है कि क्या पांडवों ने इस पवित्र पर्वत की यात्रा की थी और क्या वे कैलाश पर्वत पर चढ़ पाए थे? इस लेख में हम इन सवालों का उत्तर देंगे।
महाभारत में कैलाश पर्वत का वर्णन किया गया है कि यह एक बर्फ से ढका पर्वत है जो मलयवट और गांधमादन पर्वत शृंगों के बीच स्थित है। महाभारत में कैलाश के पास झीलों, सुंदर जंगलों, फलदार वृक्षों, बहुमूल्य रत्नों, औषधियों और नदियों का भी उल्लेख किया गया है, जो कि सत्य प्रतीत होता है। महाभारत में कैलाश को स्वर्ग तक पहुंचने का मार्ग भी बताया गया है, हालांकि यह भी कहा गया है कि केवल वही व्यक्ति इस पर्वत को पार कर पाएगा, जो पापमुक्त हो। यह माना जाता है कि युधिष्ठिर ने अपने भाईयों और पत्नी के साथ यहां से स्वर्ग की यात्रा शुरू की थी, लेकिन हम यह जानने की कोशिश करेंगे कि यह कितना सच है। महाभारत के साथ-साथ कैलाश का उल्लेख विष्णु पुराण और रामायण में भी किया गया है।
क्या पांडवों ने कैलाश यात्रा की थी?
महाभारत युद्ध के बाद पांडवों ने महाप्रस्थान की यात्रा शुरू की थी। पांच पांडव और द्रौपदी इस यात्रा पर पैदल निकले थे। माना जाता है कि उनके साथ एक कुत्ता भी था। यह भी महाप्रस्थानिक पर्व में उल्लेखित है। हालांकि, केवल धर्मराज युधिष्ठिर ही जीवित होकर स्वर्ग पहुंचे। किसी भी ग्रंथ में यह स्पष्ट रूप से नहीं कहा गया है कि पांडवों ने कैलाश पर्वत की यात्रा की थी। यह पूरी तरह से सत्य प्रतीत होता है कि पांडवों का महाप्रस्थान मार्ग कैलाश मानसरोवर के पास से था। क्योंकि कैलाश को कई ग्रंथों में स्वर्ग के द्वार के रूप में कहा गया है, इसलिए यह अनुमान लगाया जाता है कि पांडवों ने कैलाश पर्वत की यात्रा की थी। धार्मिक दृष्टिकोण से यह तथ्य भी सही प्रतीत होता है क्योंकि कैलाश से पवित्र कोई और स्थान नहीं है।
पांडवों और भगवान शिव का संबंध
पांडव भगवान शिव के बड़े भक्त थे। महाभारत में कई स्थानों पर उनके शिव के प्रति भक्ति और श्रद्धा का उल्लेख है। अर्जुन ने भगवान शिव से पाशुपतास्त्र प्राप्त करने के लिए कठोर तप किया था। यह तप उन्होंने हिमालय क्षेत्र में किया था, जो महाभारत के वन पर्व में वर्णित है। यह स्थान तपोवन और केदारनाथ के पास स्थित है, जो कैलाश मानसरोवर से भौगोलिक दृष्टि से बहुत दूर नहीं है। इससे यह स्पष्ट होता है कि पांडव भगवान शिव के भक्त थे और वे कैलाश क्षेत्र के आस-पास यात्रा किए थे।
स्कंद पुराण और शिव पुराण जैसे धार्मिक ग्रंथों में मानसरोवर की महिमा का वर्णन किया गया है। इन ग्रंथों में लिखा है कि केवल महान लोग, ऋषि और दिव्य आत्माएँ ही इस पवित्र तीर्थ स्थल की यात्रा कर सकते हैं। कुछ लोक मान्यताएँ और किवदंतियाँ भी कहती हैं कि पांडवों ने कैलाश मानसरोवर की यात्रा की थी और कैलाश क्षेत्र में भगवान शिव का दर्शन किया था। हालांकि, महाभारत के किसी भी श्लोक में इसका स्पष्ट उल्लेख नहीं है।
मानसरोवर झील और पांडवों की तपस्या
मानसरोवर झील को हिंदू धर्म में अत्यंत पवित्र माना जाता है। मान्यता है कि इस झील के किनारे तपस्या करने से आध्यात्मिक विकास और दिव्य दृष्टि प्राप्त होती है। महाभारत में पांडवों की हिमालय यात्रा से संबंधित अर्जुन की तपस्या का भी उल्लेख मिलता है। संभवतः अर्जुन ने कैलाश के पास स्थित मानसरोवर झील के किनारे तपस्या और ध्यान किया होगा। लोक मान्यताओं में पांडवों की कैलाश यात्रा से जुड़ी कई कहानियाँ और दिलचस्प किस्से मिलते हैं, जो हमें विश्वास दिलाते हैं कि पांडवों ने कैलाश मानसरोवर की यात्रा की थी, हालांकि इसका कोई स्पष्ट प्रमाण नहीं है।
