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Manimahesh Kailash: गद्दी समुदाय और शिव भूमि का अनोखा संबंध, क्या आप जानते हैं इनकी पौराणिक मान्यताएं?

Manimahesh Kailash: गद्दी समुदाय और शिव भूमि का अनोखा संबंध, क्या आप जानते हैं इनकी पौराणिक मान्यताएं?

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Manimahesh Kailash: मणिमहेश कैलाश हिमाचल प्रदेश के चंबा ज़िले में स्थित एक पवित्र स्थल है। यह स्थान पंच कैलाश में से एक माना जाता है। हर साल भगवान शिव के हजारों भक्त यहां दर्शन के लिए आते हैं। जिस तरह कैलाश पर्वत के पास मानसरोवर झील है उसी तरह यहां भी मणिमहेश झील है। कहा जाता है कि यह स्थान भगवान शिव ने माता पार्वती से विवाह से पहले बनाया था। यह स्थान शिवभक्तों के लिए बेहद आस्था और चमत्कार से भरा हुआ माना जाता है।

मणिमहेश यात्रा का धार्मिक और पौराणिक महत्व

हर साल भाद्रपद महीने में मणिमहेश यात्रा की शुरुआत होती है। यह यात्रा भरमौर से शुरू होती है और यात्रियों को लगभग 13 किलोमीटर की पैदल यात्रा करनी पड़ती है। साल 2025 में यह यात्रा 26 अगस्त से शुरू होगी। धार्मिक मान्यता के अनुसार भगवान शिव और माता पार्वती अक्सर मणिमहेश में विचरण करते हैं। यह भी मान्यता है कि जिस प्रकार कैलाश पर्वत पर कोई नहीं चढ़ पाया उसी तरह मणिमहेश कैलाश की चोटी तक भी कोई नहीं पहुंच सका। एक बार इंडो-जापान की टीम ने इस पर्वत पर चढ़ने की कोशिश की थी लेकिन वे असफल रहे। स्थानीय लोग मानते हैं कि भगवान शिव की इच्छा के बिना कोई भी इस पर्वत की चोटी तक नहीं पहुंच सकता।

Manimahesh Kailash: गद्दी समुदाय और शिव भूमि का अनोखा संबंध, क्या आप जानते हैं इनकी पौराणिक मान्यताएं?

स्थानीय किंवदंतियों और रहस्यमय मान्यताओं की भूमि

स्थानीय गद्दी समुदाय के अनुसार एक बार उनके समुदाय का एक व्यक्ति भेड़ों के साथ इस पर्वत पर चढ़ने गया था। लेकिन वह चोटी तक नहीं पहुंच सका और रास्ते में वह व उसकी भेड़ें पत्थर में बदल गईं। आज भी मणिमहेश पर्वत के मुख्य शिखर के नीचे जो छोटी चोटियां दिखाई देती हैं उन्हें उसी व्यक्ति और उसकी भेड़ों का रूप माना जाता है। यह रहस्य और आस्था का संगम है। यहां आकर हर कोई भगवान शिव की महिमा को महसूस करता है और अपने मन की शांति के लिए प्रार्थना करता है।

मणिमहेश झील और शिव की मणि का चमत्कार

मणिमहेश झील की ऊंचाई समुद्र तल से करीब 4000 मीटर है और इसके पास ही शिव की संगमरमर की मूर्ति है। भक्त यहां स्नान करते हैं और झील की परिक्रमा करते हैं। झील के पास गौरी कुंड और शिव क्रोत्री नामक दो तीर्थ स्थल भी हैं। मान्यता है कि गौरी कुंड में माता पार्वती और शिव क्रोत्री में भगवान शिव स्नान करते हैं। इसीलिए महिलाएं गौरी कुंड में और पुरुष शिव क्रोत्री में स्नान करते हैं। मणिमहेश का मतलब होता है शिव की मणि यानी उनके मुकुट का रत्न। पूर्णिमा की रात को इस मणि से झील में प्रकाश की किरणें पड़ती हैं जो एक अद्भुत दृश्य होता है। वैज्ञानिक इसे ग्लेशियर की रोशनी का प्रतिबिंब मानते हैं लेकिन श्रद्धालु इसे चमत्कार मानते हैं। गद्दी समुदाय के लोग इस स्थान को शिव भूमि कहते हैं और इसे अपना इष्ट स्थान मानते हैं। यहां स्थित धांछो जलप्रपात के पीछे भगवान शिव ने एक बार भस्मासुर से बचने के लिए गुफा में शरण ली थी। बाद में भस्मासुर का वध भगवान विष्णु ने किया था।

Neha Mishra
Author: Neha Mishra

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